Beautiful thoughts

in #beautifullast year

एक बार दो बहुमंजिली इमारतों के बीच बंधी हुई एक तार पर लंबा सा बाँस पकड़े एक नट चल रहा था, उसने अपने कन्धे पर अपना बेटे को भी बैठा रखा था।
सैंकड़ों, हज़ारों लोग दम साधे देख रहे थे। सधे कदमों से, तेज हवा से जूझते हुए अपनी और अपने बेटे की ज़िंदगी दाँव पर लगा उस कलाकार ने दूरी पूरी कर ली,‌ भीड़ आह्लाद से उछल पड़ी, तालियाँ, सीटियाँ बजने लगीं। लोग उस कलाकार की फोटो खींच रहे थे, उसके साथ सेल्फी ले रहे थे, उससे हाथ मिला रहे थे।
फिर थोड़ी देर बाद वो कलाकार माइक पर आया और भीड़ से बोला :

क्या आपको विश्वास है, कि मैं यह दोबारा भी कर सकता हूँ। भीड़ चिल्लाई हाँ हाँ, तुम कर सकते हो। उसने पूछा, क्या आपको विश्वास है, भीड़ चिल्लाई हाँ पूरा विश्वास है, हम तो शर्त भी लगा सकते हैं, कि तुम सफलतापूर्वक इसे दोहरा भी सकते हो।

कलाकार बोला, पूरा पूरा विश्वास है ना।
भीड़ बोली, हाँ जी l

कलाकार बोला, ठीक है तो, कोई मुझे अपना बच्चा दे दो, मैं उसे अपने कंधे पर बैठा कर रस्सी पर चलूँगा।

अब पूरी भीड़ में खामोशी, शांति, चुप्पी फैल गयी।
कलाकार बोला, डर गए ना, अभी तो आप सब को विश्वास था कि मैं कर सकता हूँ।
जब आप का बच्चा मांग लिया तो चुप हो गया.?

ठीक बिलकुल इसी तरह दंगे करवाने वाले लोग कभी अपने बच्चों को दंगों में नहीं भेजते..! भोले भाले, कम शिक्षित लोगों को उकसाते है.. और वो आवेश में आकर अपने बच्चों को मरने भेजते हैं..
खास बात ऐसा कोई एक नहीं करता है यह कहानी सभी पार्टियों, संगठनों, सामाजिक सेनाओं, जातियों, धर्मों..... सभी यही फार्मूला अपनाते है
अपनी रोटियां सेंकने के लिए, किसी मां के बेटे तो किसी सुहागन के सुहाग की जान दाव पर लगाते है
आप अर्थात जनता अपने विवेक से खुद सोचिए, उनके जोशीले नारों में आकर अपने बच्चों को मरने मत भेजिए।

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प्यार बाटो नफरत नही
🙏🙏🙏🙏🙏

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